मेवाड़ का इतिहास :- राजस्थान इतिहास

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मेवाड़ का इतिहास (History of Mewar)

मेवाड़ के प्राचीन नाम

  1. मेदपाट
  2. प्राग्वाट
  3. शिवि जनपद
  • मेवाड़ में गुहिल वंश का शासन था। गुहिल सूर्यवंशी हिंदू शासक थे। इस वंश की 24 शाखाओं में से मेवाड़ के गुहिल सर्वाधिक प्रमुख थे। यह विश्व में दीर्घकालीन शासन करने वाला एक महत्वपूर्ण राजवंश माना जाता है।
  • मुस्लिम इतिहासकार फरिश्ता के अनुसार, "मेवाड़ के राणा बहुत प्राचीन काल से राज्य करते आ रहे हैं, और उनका शासन मुसलमान धर्म के उद्भव से भी पहले का है।"

मेवाड़ का इतिहास
मेवाड़ का इतिहास


गुहिल

गुहिल को गुहिल वंश का संस्थापक माना जाता है। इसे वल्लभी (गुजरात) के शीलादित्य का पुत्र माना गया है (कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार)। इसकी माता का नाम पुष्पावती था। गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार, गुहिल ने 566 ईस्वी में मेवाड़ में शासन किया था (सामोली अभिलेख के आधार पर)।
1869 ईस्वी में आगरा से गुहिल के 2000 चांदी के सिक्के प्राप्त हुए थे।

सामोली अभिलेख (646 ईस्वी)

यह शीलादित्य का अभिलेख है, जो गुहिल वंश के पांचवें शासक थे। [ वंशावली: गुहिल भोज महेंद्र नाग शीलादित्य ]।

  • यह गुहिल वंश का प्राचीनतम अभिलेख माना जाता है, जो इस वंश के काल निर्धारण में सहायक है।
  • अभिलेख के अनुसार, वटनगर (सिरोही) से आए महाजन समुदाय के मुखिया जैतक महत्तर ने आरण्यकगिरि में अरण्यवासिनी देवी (जावर माता) का मंदिर बनवाया।
  • यह मंदिर 18 प्रकार के गायकों से सुसज्जित रहता था।
  • जैतक ने देवबुकनामक स्थान पर अग्नि में प्रवेश कर लिया था |

बापा रावल (734-753 ईस्वी)

गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार, बापा रावल का वास्तविक नाम कालभोज था।

  • वह हारीत ऋषि के शिष्य थे। हारीत ऋषि के आशीर्वाद से, बापा रावल ने 734 ईस्वी में मानमोरी को पराजित कर चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया (राजप्रशस्ति के अनुसार)।
  • उनकी राजधानी नागदा (उदयपुर) थी। उन्होंने कैलाशपुरी (उदयपुर) में एकलिंगजी (लकुलीश) का मंदिर बनवाया।
  • मेवाड़ के शासक स्वयं को एकलिंगजी का दीवान मानते थे।

सैन्य विजय और उपलब्धियां

  • बापा रावल ने मुस्लिम सेना को हराते हुए गजनी (अफगानिस्तान) तक अपना अभियान चलाया। वहां के शासक सलीम को हराकर अपने भांजे को राजा बनाया।
  • इतिहासकार चिंतामणि विनायक वैद्य ने बापा रावल की तुलना चार्ल्स मार्टेल से की है, जो यूरोपीय सेनापति थे और जिन्होंने यूरोप में पहली बार मुसलमानों को पराजित किया।
  • बापा रावल के समय का एक 115 ग्राम का तांबे का सिक्का प्राप्त हुआ है।
  • बापा के सैन्य अभियानों के कारण पाकिस्तान के एक शहर का नाम रावलपिंडी पड़ा।

उपाधियां

  1. हिंदू सूर्य
  2. राजगुरु
  3. चक्कवै (चारों दिशाओं को जीतने वाला)

 

अल्लट                  

अन्य नाम:  आलू रावल

अल्लट ने आहड़ (उदयपुर) को अपनी दूसरी राजधानी बनाया और वहां पर वराह (विष्णु) मंदिर का निर्माण करवाया।

  • उन्होंने मेवाड़ में नौकरशाही (प्रशासनिक व्यवस्था) की स्थापना की (सारणेश्वर प्रशस्ति के अनुसार)।

परिवार और विवाह

  • आटपुर (आहड़) से प्राप्त विक्रमादित्य के अभिलेख (977 ईस्वी) के अनुसार, अल्लट की माता का नाम महालक्ष्मी राठौड़ था, जो राष्ट्रकूट वंश से संबंधित थीं।
  • अल्लट ने हूण राजकुमारी हरिया देवी से विवाह किया था। हरिया देवी ने हर्षपुर नामक गांव की स्थापना की।

सारणेश्वर प्रशस्ति (953 ईस्वी)

  • यह प्रशस्ति उदयपुर के सारणेश्वर नामक शिवालय से प्राप्त हुई थी, जो पहले आहड़ के वराह मंदिर में स्थित थी।
  • इसमें अल्लट, उसकी माता महालक्ष्मी, और उसके पुत्र नरवाहन का उल्लेख है।
  • प्रशस्ति में अल्लट के प्रशासनिक अधिकारियों के नाम और उनके पदों का विवरण भी दिया गया है।
  • वराह मंदिर के दानदाताओं (गोविकों) की नामावली भी प्रशस्ति में दर्ज है।

प्रशस्ति से प्राप्त जानकारी

  • तत्कालीन कर प्रणाली और मंदिर की निवाह व्यवस्था के बारे में जानकारी मिलती है।
  • उस समय आहड़ में कर्नाटक, मध्यदेश, लाट (गुजरात का एक भाग), और टक्क (पंजाब का एक भाग) से व्यापारी आकर बसे थे।

वराह मंदिर निर्माण

  • वराह मंदिर का निर्माण उत्तम सूत्रधार अग्रट ने किया।
  • प्रशस्ति के शिल्पकार कायस्थ पाल और वेलक थे।

जैत्रसिंह (1213-1253 ईस्वी)

  • 1227 ईस्वी में हुए भूताला (उदयपुर) के युद्ध में जैत्रसिंह ने दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश को पराजित किया।
  • यह जानकारी जैन मुनि जसरत सिंह सूरी की पुस्तक हम्मीर मदमर्दन से मिलती है।
  • इसमें इल्तुतमिश को हम्मीर (महान योद्धा) कहा गया है।

राजधानी का स्थानांतरण

  • इल्तुतमिश की लौटती सेना ने नागदा को तहस-नहस कर दिया।
  • इसके बाद जैत्रसिंह ने चित्तौड़ को परमारों से छीनकर राजधानी बनाया।

इतिहास में महत्व

  • डॉ. दशरथ शर्मा जैत्रसिंह के शासनकाल को मध्यकालीन मेवाड़ का स्वर्णकाल मानते हैं।
  • गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार, "दिल्ली के गुलाम वंश के सुल्तानों के समय में मेवाड़ के राजाओं में सबसे प्रभावी और बलवान राजा जैत्रसिंह ही था। उसकी वीरता की प्रशंसा उसके विरोधियों ने भी की है।"

जयसिंह सूरी  

  • जयसिंह सूरी  धोलका (गुजरात) के बघेल (सोलंकी) राजा वीरधवल के मंत्री वस्तुपाल और तेजपाल का कृपापात्र था।
  • उसने 'हम्मीर मदमर्दन' नाटक में राजा वीरधवल की प्रशंसा की है।
  • उसकी एक अन्य प्रसिद्ध रचना ' वस्तुपाल प्रशस्ति' है।

रत्नसिंह [1302-1303 ईस्वी ]

1303 ईस्वी में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने चितौड़ पर आक्रमण किया |

  • आक्रमण का कारण:

    1. अलाउद्दीन खिलजी की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाएँ।
    2. चित्तौड़ का सामरिक महत्व (दृढ़ पहाड़ी, विशाल प्राचीर, अन्न-जल भंडारण)।
    3. चित्तौड़ का व्यापारिक महत्व (दिल्ली से गुजरात और मालवा मार्ग पर स्थित)।
    4. मेवाड़ का बढ़ता हुआ प्रभाव।
    5. प्रतिष्ठा का प्रश्न (सुल्तान के गुजरात जाते समय रत्नसिंह के पिता समरसिंह ने मार्ग देने से इनकार किया)।
    6. रत्नसिंह की पत्नी रानी पद्मिनी को प्राप्त करने की लालसा ।

  • चित्तौड़ की पराजय:

    • 1303 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया।
    • इस आक्रमण के समय चितौड़ का प्रथम साका हुआ चित्तौड़ की रक्षा के दौरान रानी पद्मिनी ने 1600 महिलाओं के साथ जौहर किया।
    • रत्नसिंह ने अपने सेनापतियों गोरा और बादल के साथ युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की।
    • 25 अगस्त 1303 ईस्वी को सुल्तान ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया।
    • अगले दिन, 30,000 निर्दोष नागरिकों का नरसंहार करवाया।
    • अलाउद्दीन खिलजी ने अपने पुत्र खिज्र खाँ को चित्तौड़ भेजा और वहाँ पर चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद कर दिया।

  • आक्रमण का विवरण:

    • अमीर खुसरो ने अपनी पुस्तक खजाईन -उल - फुतुह ' (तारीख-ए-अलाई) में इस आक्रमण का वर्णन किया है।
    • 1325 ईस्वी में चित्तौड़ के धाईबी पीर की दरगाह के फारसी अभिलेख में चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद मिलता है।

  • खिज्र खाँ द्वारा कार्य:

    • गंभिरी नदी पर पुल का निर्माण।
    • चित्तौड़ की तलहटी में एक मकबरे का निर्माण।
    • 1310 ईस्वी के फारसी अभिलेख में अलाउद्दीन खिलजी को सुल्तान-ए-आजम  , दूसरा सिकंदर और ईश्वर की छाया  कहा गया है।

  • चित्तौड़ का भविष्य:
    • बाद में चित्तौड़ को मालदेव सोनगरा (मूछांला मालदेव) को सौंप दिया गया।
    • यह जालौर के शासक कान्हड़देव सोनगरा का भाई था | जालौर के पतन के बाद मालदेव सोनगरा सुल्तान की सेवा में चला गया था |

1540 ईस्वी में मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा अवधि भाषा में लिखित ' पद्मावत ' महाकाव्य में रानी पद्मिनी को सिंहल द्वीप की राजकुमारी बताया गया है | इसके अनुसार पद्मिनी के पिता गंधर्वसेन तथा माता चम्पावती थी | राघव चेतन ने अलाउद्दीन खिलजी को पद्मावती की सुंदरता के बारे में बताया |  अबुल फजल, फरिश्ता, कर्नल टॉड, मुहणोत नेणसी, दशरथ शर्मा ने इस कहानी को कुछ हद तक सही माना है | सूर्यमल्ल मीसण ने इसे स्वीकार नहीं किया है |

हम्मीर (1326 - 1364):

↪ हम्मीर सिसोदा (राजसमंद) के सामंत थे, और उनके शासनकाल से गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा की शुरुआत हुई। उन्होंने "राणा" उपाधि का प्रयोग किया। (रतनसिंह रावल, रावल शाखा के अंतिम शासक थे।)

↪ 1326 ईस्वी में, हम्मीर ने मालदेव सोनगरा के पुत्र बनवीर/जैसा को हराकर चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया। सिंगोली (बांसवाड़ा) के युद्ध में उन्होंने मुहम्मद बिन तुगलक को पराजित किया।

↪ कर्नल जेम्स टॉड ने हम्मीर को "प्रबल हिन्दू" कहा है। कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में उन्हें "विषम घाटी पंचानन" और रसिकप्रिया में "वीर राजा" के रूप में वर्णित किया गया है। इसके अलावा, उन्हें "मेवाड़ का उद्धारक" भी कहा जाता है।

↪ हम्मीर ने चित्तौड़ में बर्वड़ी (अन्नपूर्णा) माता का मंदिर बनवाया, जो मेवाड़ के गुहिल वंश की ईष्ट देवी मानी जाती हैं। (गुहिल वंश की कुलदेवी बाण माता हैं।)

↪ सिसोदा का क्षेत्र रावल रणसिंह/कर्णसिंह के समय राहप को दिया गया था। राहप के वंशज लक्ष्मण सिंह ने अपने पुत्र अरिसिंह (जो हम्मीर के पिता थे) के साथ चित्तौड़ के प्रथम साके में वीरगति प्राप्त की। हम्मीर के चाचा अजय सिंह ने उन्हें सिसोदा का सामंत नियुक्त किया था।

↪ अजय सिंह के पुत्र सज्जन सिंह दक्षिण भारत चले गए, और यह माना जाता है कि मराठा शासक शिवाजी उन्हीं के वंशज थे।

महाराणा लाखा (लक्ष सिंह) - (1382 - 1421 ई.):

  1. जावर की चाँदी की खान:
    महाराणा लाखा के शासनकाल में जावर (उदयपुर) में चाँदी की खान की खोज हुई।
  2. पिछोला झील का निर्माण:
    एक बंजारे (घुमक्कड़ व्यापारी) ने पिछोला झील का निर्माण करवाया। इस झील के पास 'नटनी का चबूतरा' स्थित है।
  3. कुम्भा हाड़ा का बलिदान:
    राणा लाखा के साले, कुम्भा हाड़ा, नकली बूंदी की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

राणा लाखा का विवाह और चूण्डा का त्याग:

  1. मेवाड़ और मारवाड़ का संबंध:
  • राणा लाखा (मेवाड़, गुहिल वंश) और राजा रणमल (मारवाड़, राठौड़ वंश) के बीच संबंध विवाह से मजबूत हुए।
  • राणा लाखा ने राजा रणमल की बेटी हंसाबाई से विवाह किया।
 चूण्डा की प्रतिज्ञा:                                                                                                                                                      

  • राणा लाखा के बेटे चूण्डा ने यह प्रतिज्ञा की कि वह मेवाड़ का अगला राजा नहीं बनेगा।
  • चूण्डा ने घोषणा की कि हंसाबाई का बेटा मेवाड़ का अगला राजा होगा।

  • इस त्याग के कारण चूण्डा को "मेवाड़ का भीष्म" कहा गया।      
                                                                                                                                                                                 चूण्डा के विशेषाधिकार:                              

    • मेवाड़ के 16 प्रथम श्रेणी ठिकानों में से 4 ठिकाने चूण्डा को दिए गए, जिनमें सलूम्बर (उदयपुर) सबसे बड़ा ठिकाना था।
    • सलूम्बर का सामंत:
    • राजा का राजतिलक करेगा।
    • मेवाड़ की सेना का सेनापति होगा।
    • मेवाड़ के सभी राजपत्रों पर राणा के साथ हस्ताक्षर करेगा।
    • राणा की अनुपस्थिति में राजधानी का प्रबंधन करेगा।

सेना का संगठन:

  1. हरावल: सेना का अगला भाग।
  2. चन्दावल: सेना का पिछला भाग।

महाराणा मोकल (1421-1433 ई.):

वंश और संरक्षकता:

    • पिता: महाराणा लाखा
    • माता: हंसाबाई
    • प्रथम संरक्षक: चूण्डा
    • हंसाबाई के अविश्वास के कारण चूण्डा मेवाड़ छोड़कर मालवा चला गया।
    • उस समय मालवा का सुल्तान होशंगशाह था।
    • द्वितीय संरक्षक: रणमल (मारवाड़ के राजा)

धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान:

    • एकलिंग मंदिर:
    • महाराणा मोकल ने एकलिंग मंदिर का परकोटा (चारदिवारी) बनवाया।
    • समिद्धेश्वर मंदिर:
    • चित्तौड़ में 'समिद्धेश्वर मंदिर' का पुनर्निर्माण करवाया।
    • इस मंदिर को पहले 'त्रिभुवन नारायण मंदिर' कहा जाता था।
    • यह मूलतः भोज परमार द्वारा बनवाया गया था।
    • द्वारिकानाथ मंदिर:
    • चित्तौड़ में जलाशय सहित द्वारिकानाथ (भगवान विष्णु) का मंदिर बनवाया।
    • श्रृंगी ऋषि का स्थान:
    • अपनी बाघेला वंश की रानी गौराम्बिका की स्मृति में श्रृंगी ऋषि के स्थान पर एक बावड़ी का निर्माण करवाया।
    • बाघेला तालाब:
    • अपने भाई बाघसिंह के नाम से 'बाघेला तालाब' का निर्माण करवाया।

    महत्वपूर्ण अभिलेख:

      • हस्तिकुण्डी अभिलेख (997 ई.):

      • यह बीजापुर (पाली) के निकट हस्तिकुंडी नामक स्थान से प्राप्त हुआ।
      • इसके अनुसार, जब मालवा के परमार राजा मुंज (वाक्पतिराज, अमोघवर्ष) ने मेवाड़ पर आक्रमण किया और आघाट (आहड़) को तोड़ा, तो राठौड़ राजा ममट के पुत्र धवल ने मेवाड़ की सहायता की।
      • उस समय मेवाड़ का शासक शक्ति कुमार था।

      • श्रृंगी ऋषि अभिलेख (1428 ई.):

      • यह अभिलेख उदयपुर में एकलिंग जी के समीप प्राप्त हुआ।
      • यह संस्कृत भाषा में लिखा गया है और मोकल के शासनकाल से संबंधित है।
      • इसके अनुसार:
      • मोकल ने अपनी रानी गौराम्बिका की मुक्ति के लिए एक कुण्ड का निर्माण करवाया।
      • इस अभिलेख से हम्मीर से मोकल तक के शासकों की जानकारी मिलती है।
      • हम्मीर ने जीलवाड़ा, ईडर, पालनपुर को जीता और भीलों को हराया।
      • क्षेत्र सिंह ने मालवा के प्रांतपति अमीशाह को हराया।
      • लक्ष सिंह ने काशी, प्रयाग और गया को कर मुक्त करवाया।
      • मोकल ने नागौर के फिरोज खान और गुजरात के अहमद शाह को हराया।
      • मोकल ने एकलिंग मंदिर की प्राचीर और तीन द्वारों का निर्माण करवाया।
      • मोकल ने 25 तुलादान किए, जिनमें से एक पुष्कर के वराह मंदिर में किया गया।
      मोकल ने इस कुण्ड के निर्माण की आज्ञा गुरू त्रिलोचन से प्राप्त की थी तथा अपने अन्य रानी मायापुरी के साथ प्रतिष्ठा समारोह में भाग लिया था ।

      शिल्पकार:

        • रचयिता: कविराज वाणीविलास योगीश्वर
        • उत्कीर्णक: फना

मृत्यु:

    • 1433 ई. में गुजरात के सुल्तान अहमद शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया।
    • इसी समय मोकल की हत्या चाचा,  मेरा और महपा पंवार ने जीलवाड़ा (राजसमंद) नामक स्थान पर कर दी।

महाराणा कुम्भा (1433 - 1468 ई.)

  • पिता: महाराणा मोकल
  • माता: सौभाग्यवती परमार
  • संरक्षक: रणमल
  • रणमल ने राणा कुम्भा को उनके पिता की हत्या का बदला लेने में सहायता की।
  • रणमल का मेवाड़ दरबार में प्रभाव बढ़ा, और उसने सिसोदियों के नेता राघवदेव (चूण्डा के भाई) को मरवा दिया।
  • हंसाबाई ने चूण्डा को मालवा से वापस बुलाया।
  • बाद में, रणमल को भारमली की सहायता से मार दिया गया। रणमल का बेटा जोधा भागकर बीकानेर के पास काहुनी नामक गांव में शरण लेता है।
  • चूण्डा ने राठौड़ों की राजधानी मंडौर (जोधपुर) पर अधिकार कर लिया।

आंवल-बांवल की संधि (1453 ई.)

  • संधि के पक्ष: जोधा (मारवाड़) और राणा कुम्भा (मेवाड़)
  • संधि शर्तें:
    1. सोजत (पाली) को मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा घोषित किया गया।
    2. जोधा को मंडौर (जोधपुर) वापस सौंप दिया गया।
    3. राणा कुम्भा के बेटे रायमल की शादी जोधा की बेटी शृंगार कंवर से की गई।

महत्वपूर्ण युद्ध और विजय

सारंगपुर का युद्ध (1437 ई.):

    • पक्ष: राणा कुम्भा बनाम महमूद खिलजी (मालवा सुल्तान)
    • युद्ध के कारण:
      1. महमूद खिलजी ने मोकल के हत्यारों (महपा पंवार और चाचा के पुत्र एक्का) को शरण दी थी।
      2. राणा कुम्भा ने महमूद खिलजी के विद्रोही उमर खाँ को सहायता देकर सारंगपुर पर अधिकार करवाया।
      3. दोनों की साम्राज्य विस्तार की महत्वाकांक्षाएँ।
    • परिणाम:
      • राणा कुम्भा की जीत हुई।
      • महमूद खिलजी को गिरफ्तार कर लिया गया।
      • इस विजय की स्मृति में चित्तौड़ में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया गया।

चम्पानेर की संधि (1456 ई.):

    • संधि के पक्ष:
    • महमूद खिलजी (मालवा)
    • कुतुबुद्दीन शाह (गुजरात)
    • उद्देश्य:
    • राणा कुम्भा को हराकर मेवाड़ के दक्षिणी भाग पर गुजरात का अधिकार स्थापित करना।
    • मेवाड़ के विशेष भाग और अहीरवाड़ा पर मालवा का अधिकार करना।
    • इस संधि में महमूद खिलजी का प्रतिनिधि ताज खाँ ने कुतुबुद्दीन शाह से मुलाकात की थी।

राणा कुम्भा के प्रमुख कार्य और योगदान

विजय स्तम्भ का निर्माण:

    • सारंगपुर के युद्ध में जीत की स्मृति में चित्तौड़ में भव्य विजय स्तम्भ बनवाया।

सामरिक और सांस्कृतिक योगदान:

    • राणा कुम्भा ने मेवाड़ में कला, वास्तुकला, और संस्कृति को समृद्ध किया।
    • अपने शासनकाल में किलों और मंदिरों का निर्माण करवाया।
    • मेवाड़ को सामरिक रूप से मजबूत और एकीकृत बनाया।

राजनीतिक कुशलता:

    • आंवल-बांवल की संधि और जोधा से विवाह संबंध स्थापित कर मेवाड़ और मारवाड़ के बीच संतुलन स्थापित किया।

बदनौर का युद्ध (1457 ई.)

  • पक्ष: राणा कुम्भा बनाम मालवा और गुजरात की संयुक्त सेना।
  • परिणाम:
  • राणा कुम्भा ने मालवा और गुजरात की संयुक्त सेना को हराया।
  • स्रोत: इस घटना का उल्लेख कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति और रसिक प्रिया में मिलता है।
  • अन्य उल्लेखनीय विजय:
  • राणा कुम्भा ने सिरोही के सहसमल देवड़ा को भी हराया।
  • सहसमल देवड़ा ने गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन शाह की सहायता की थी।
  • इस अभियान के दौरान, राणा कुम्भा ने नरसिंह डोडिया के नेतृत्व में सेना भेजी।

नागौर का उत्तराधिकार संघर्ष

  • कारण:
    • नागौर के शासक फिरोज खाँ की मृत्यु के बाद उसके बेटे शम्स खाँ और भाई मुजाहिद खाँ के बीच उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष हुआ।
  • राणा कुम्भा की भूमिका:
    • राणा कुम्भा ने शम्स खाँ का समर्थन किया और मुजाहिद खाँ को हराया।
    • बाद में, शम्स खाँ ने नागौर किले की किलेबंदी शुरू की, जिससे राणा कुम्भा नाराज हुए।
  • परिणाम:
    • राणा कुम्भा ने नागौर पर आक्रमण किया, जिसके बाद शम्स खाँ भागकर गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन शाह के पास गया।
    • शम्स खाँ ने अपनी बेटी का विवाह कुतुबुद्दीन शाह से कर लिया।
    • कुतुबुद्दीन शाह और शम्स खाँ ने मिलकर मेवाड़ पर आक्रमण किया, लेकिन राणा कुम्भा ने इन्हें पराजित कर दिया।
  • महत्व: नागौर का यह संघर्ष मेवाड़ और गुजरात के बीच विवाद का एक बड़ा कारण बन गया।

राणा कुम्भा की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ      

. स्थापत्य कला:

  • राणा कुम्भा को "राजस्थान की स्थापत्य कला का जनक" कहा जाता है।

विजय स्तम्भ (कीर्ति स्तम्भ):

  • अन्य नाम:
    • विष्णु ध्वज
    • गरुड़ ध्वज
    • मूर्तियों का अजायबघर
    • भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • ऊँचाई: 122 फीट
    • चौड़ाई: 30 फीट
    • मंजिलें: 9
    • 8वीं मंजिल: इसमें कोई मूर्ति नहीं है।
    • तीसरी मंजिल: इसमें 9 बार अरबी भाषा में "अल्लाह" शब्द लिखा हुआ है।
    • वास्तुकार: जैता, पूंजा, पोमा, नापा (पांचवीं मंजिल पर इनके नाम खुदे हैं)।
    • प्रशस्ति लेखक: अत्रि और महेश।
    • पुनर्निर्माण: मेवाड़ के महाराणा स्वरूप सिंह द्वारा करवाया गया।

विशेषताएँ और तुलना:

  • जेम्स टॉड: कुतुबमीनार से तुलना।
  • फर्ग्यूसन: रोम के टॉर्जन टॉवर से तुलना।
  • गोपीनाथ शर्मा ने इसे हिन्दू देवी-देवता से सजाया हुआ एक व्यवस्थित संग्रहालय बताया है तथा गोरीशंकर हीराचन्द ओझा ने इसे पौराणिक देवताओं के अमूल्य कोष की संज्ञा दी है।
  • डाक टिकट सम्मान:
    • विजय स्तम्भ राजस्थान की पहली इमारत है, जिस पर डाक टिकट जारी किया गया।

कुम्भा का सांस्कृतिक योगदान:

वास्तुकला:

    • विजय स्तम्भ जैसे भव्य निर्माण।
    • मेवाड़ में स्थापत्य कला को नई ऊँचाई पर पहुँचाया।

संगीत और साहित्य:

    • कुम्भा ने कई ग्रंथों की रचना की।
    • संगीत में भी महारत हासिल थी।

धार्मिक सहिष्णुता:

    • हिंदू और मुस्लिम कला के प्रतीकों का संगम।
    • अरबी और भारतीय स्थापत्य शैली का अद्वितीय मिश्रण।

 

प्रतीक चिन्ह

1.     राजस्थान पुलिस का प्रतीक चिन्ह:

    • "सदैव सत्य की रक्षा करें" (सत्यमेव जयते)।
    • प्रतीक में सूर्य का चित्र।

2.     राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का प्रतीक चिन्ह:

    • राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है।
    • प्रतीक में सूर्य, पुस्तक, और मोर।

3.     अभिनव भारत (वीर सावरकर का संगठन):

    • "अभिनव भारत" संगठन की स्थापना वीर सावरकर ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए की थी।
    • संगठन का ध्येय: स्वराज और भारत की स्वतंत्रता।

जैन कीर्ति स्तम्भ

  • स्थान: चित्तौड़ किले में स्थित।
  • मंजिलें: 7 मंजिला।
  • निर्माण काल: 12वीं शताब्दी।
  • निर्माता: जैन व्यापारी जीजा शाह बघेरवाल
  • समर्पण: भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव) को।
इसे आदिनाथ स्तम्भ भी कहा जाता है।

कुम्भा द्वारा निर्मित किले

किलेंकविराजा श्यामलदास जी की पुस्तक वीर विनोद के अनुसार कुम्भा ने मेवाड के 84 में से 32 किलों का निर्माण करवाया ।

1. कुम्भलगढ़ (राजसमंद):

  • वास्तुकार: मण्डन।
  • महत्त्व:
    • मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी।
    • मेवाड़-मारवाड़ का सीमा प्रहरी।
    • इसे "मेवाड़ की आँख" कहा जाता है।
  • प्रशस्ति:
    • लेखक: महेश।
    • प्रशस्ति में कुम्भा को "धर्म एवं पवित्रता का अवतार" और "कर्ण व भोज के समान दानवीर" बताया गया है।
  • विशेष:
    • सबसे ऊँचा स्थान "कटारगढ़," जो कुम्भा का निजी आवास था।

2. अचलगढ़ (सिरोही):

  • निर्माण: 1452 ई. में राणा कुम्भा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया।

3. बसन्तगढ़ (बासन्ती दुर्ग) (सिरोही):

  • क्षेत्रीय नियंत्रण हेतु निर्मित।

4. मचान दुर्ग (सिरोही):

  • मेरों पर नियंत्रण हेतु।

5. भोमट दुर्ग (उदयपुर):

  • भीलों पर नियंत्रण हेतु।

6. बैराठ दुर्ग (भीलवाड़ा):

  • क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए निर्मित।

कुम्भा द्वारा निर्मित प्रमुख मंदिर

1.     कुम्भस्वामी मंदिर:

    • स्थान: चित्तौड़गढ़, कुम्भलगढ़ और अचलगढ़।
    • भगवान विष्णु को समर्पित।

2.     मीरा मंदिर (एकलिंगजी):

    • विष्णु को समर्पित।
    • भक्त मीरा बाई से संबंधित।

श्रृंगार चंवरी मंदिर (शांतिनाथ जैन मंदिर)

  • निर्माता: वेला भंडारी (चित्तौड़ के कोषाध्यक्ष)।

रणकपुर (पाली) जैन मंदिर

  • निर्माण काल: 1439 ई.
  • निर्माता: जैन व्यापारी धरणकशाह
  • मुख्य मंदिर: चौमुखा मंदिर।
    • भगवान आदिनाथ की मूर्ति स्थापित।
    • 1444 स्तम्भों वाला यह मंदिर "स्तम्भों का अजायबघर" कहलाता है।
वास्तुकार: देपाक

साहित्य में योगदान

संगीत और कला में महारत

  • राणा कुम्भा एक उत्कृष्ट संगीतज्ञ थे।
  • वीणा बजाने में निपुणता।
  • संगीत गुरू: सारंग व्यास।
  • यह जानकारी कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति से प्राप्त होती है।

पुस्तकें (रचनाएँ)

  1. सुधा प्रबंध।
  2. कामराज रतिसार (7 भाग)।
  3. संगीत सुधा।
  4. संगीत मीमांसा।
  5. संगीत क्रम दीपिका।
  6. संगीत राज (5 भाग)।

पाठ्य रत्न कोष।, गीत रत्न कोष।, नृत्य रत्न कोष।, वाद्य रत्न कोष।, रस रत्न कोष।

कुम्भा की टीकाएँ

  1. रसिक प्रिया:
    • जयदेव की 'गीत गोविन्द' पर टीका।
  2. संगीत रत्नाकर पर टीका:
    • लेखक: सारंगधर।
  3. चंडीशतक पर टीका:
लेखक: बाणभट्ट।

नाटक

  1. मुरारि संगति (कन्नड़)।
  2. रस नन्दिनी (मेवाड़ी)।
  3. नन्दिनी वृति (मराठी)।
  4. अतुल्य चातुरी (संस्कृत)।

भाषाओं का ज्ञान

  • राणा कुम्भा मराठी, कन्नड़, और मेवाड़ी भाषाओं के विद्वान थे।

दरबारी विद्वान और कुम्भा का योगदान

  • कान्ह व्यास:

    • एकलिंग महात्म्य (पुस्तक)
    • इस पुस्तक में कुम्भा की वेद, स्मृति, मीमांसा, उपनिषद, व्याकरण, और राजनीति में रुचि का उल्लेख है। इसका पहला भाग "राजवर्णन" कहलाता है, जिसे कुम्भा ने स्वयं लिखा था।

  • मेहाजी:

    • तीर्थमाला (पुस्तक)
    • इस पुस्तक में 120 तीर्थों का वर्णन किया गया है। मेहा जी ने कुम्भलगढ़ और रणकपुर मंदिरों के निर्माण की जानकारी दी है। वह रणकपुर मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह में उपस्थित थे। उनके अनुसार, कुम्भा हनुमान जी की मूर्तियाँ सोजत और नागौर से लाकर कुम्भलगढ़ और रणकपुर में स्थापित कराई गई थीं।

  • मण्डन:

    • वास्तुसार
    • देवमूर्ति प्रकरण (रूपावतार)
    • राजवल्लभ (भूपतिवल्लभ)
    • रूपमण्डन (मूर्तिकला की जानकारी)
    • कोदंड मंडन (धनुष निर्माण की जानकारी)

  •  नाथा:

    • मण्डन का भाई।
    • वास्तु मंजरी नामक ग्रंथ लिखा।

  • गोविन्द:

    • मण्डन का पुत्र।
    • द्वार दीपिका, उद्धार धोरिणी, कलानिधि (मंदिर शिखर निर्माण की जानकारी), और सार समुच्चय (आयुर्वेद की जानकारी) जैसे ग्रंथों की रचना की।

  • रमाबाई:

    • कुम्भा की पुत्री।
    • अपने पिता की तरह संगीत में रुचि रखती थीं।
    • उन्हें जावर परगना प्रदान किया गया था।
    • उपाधि: वागीश्वरी।

  • हीरानन्द मुनि:

    • कुम्भा के गुरु।
    • कुम्भा ने उन्हें कविराज की उपाधि प्रदान की।

  • अन्य विद्वान:

    • तिला भट्ट
    • सोमदेव सूरि (जैन विद्वान)
    • सोमसुन्दर सूरि (जैन विद्वान)
    • जयशेखर (जैन विद्वान)
    • भुवनकीर्ति (जैन विद्वान): कुम्भा ने जैन तीर्थयात्रा को समाप्त कर दिया था।

कुम्भा की उपाधियाँ:

  • हिन्दू सुरतान: हिंदुओं के रक्षक।
  • अभिनव भरताचार्य / नव्य भरत: संगीत के क्षेत्र में योगदान।
  • राणा रासौ: साहित्य में योगदान।

  •  हाल गुरू (पहाड़ी किले जीतने वाला) v. चाप गुरू (धनुर्धर)

  • परम भागवत (विष्णु भक्त )
  • आदि वराह (विष्णु भक्त)
• कुम्भा की हत्या उसके बेटे ऊदा ने कुम्भलगढ़ किले में की थी।

कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति

कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति 3 दिसंबर 1460 ई. (मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी, विक्रमी संवत 1517) को अत्रि भट्ट और महेश भट्ट द्वारा लिखी गई थी। यह प्रशस्ति मूलतः 8 शिलाओं पर लिखी गई मानी जाती है, लेकिन वर्तमान में केवल 2 शिलाएँ ही उपलब्ध हैं।

इस प्रशस्ति से हमें बापा रावल से लेकर महाराणा कुम्भा तक के मेवाड़ के गुहिल वंशीय शासकों की उपलब्धियों की जानकारी मिलती है। इसमें कुम्भा के विजय अभियानों का विस्तृत वर्णन मिलता है, जैसे मंडोर, सपादलक्ष, नराणा, बसंतपुर, आबू, खंडेला, जांगलदेश, नागौर, गुजरात और मालवा की जीतें। खासतौर पर इसमें मालवा और गुजरात की संयुक्त सेनाओं को पराजित करने का उल्लेख है।

प्रशस्ति में महाराणा कुम्भा द्वारा रचित ग्रंथों का भी वर्णन किया गया है, जिनमें संगीतराज, चंड़ीशतक, गीतगोविन्द की टीका, सुधा-प्रबंध और चार नाटक शामिल हैं। साथ ही, कुम्भा के विरूदों (उपाधियों) का उल्लेख भी मिलता है, जैसे राजगुरू, दानगुरू, शैलगुरू, और अभिनव भरताचार्य

इस प्रशस्ति से कुम्भलगढ़, अचलगढ़ और कीर्तिस्तम्भ जैसे निर्माण कार्यों की तिथियों की जानकारी मिलती है। महाराणा कुम्भा ने कीर्ति स्तम्भ के विषय पर स्तम्भराज नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ की रचना उन्होंने ब्रह्मा के पुत्र जय और अपराजित के मतों को ध्यान में रखते हुए की थी। इसे उन्होंने कीर्तिस्तम्भ की शिलाओं पर खुदवाकर स्थापित करवाया।

रायमल (1473-1509 ई.)

राजनीतिक उपलब्धियाँ

  • रायमल ने अपने भाई ऊदा को हराकर (जावर और दाडिमपुर के युद्धों में) मेवाड़ का शासक बनने का गौरव हासिल किया। ऊदा ने मालवा के सुल्तान गयासशाह से सहायता लेने की कोशिश की, लेकिन बिजली गिरने से उसकी मृत्यु हो गई।
  • 1488 ई. की एकलिंग प्रशस्ति के अनुसार, रायमल ने मालवा के सुल्तान गयासशाह को पराजित किया।

सांस्कृतिक उपलब्धियाँ

  • रायमल ने चित्तौड़ में अद्भुत (अदबदजी) शिव मंदिर का निर्माण करवाया।
  • अन्य अदबदजी मंदिरों में शामिल हैं:
    • नागदा का शांतिनाथ जैन मंदिर
    • चित्तौड़ का समिद्वेश्वर (त्रिभुवननारायण) मंदिर
  • एकलिंगजी मंदिर (कैलाशपुरी, नागदा) का वर्तमान स्वरूप भी रायमल के शासनकाल में ही तैयार हुआ।
  • रायमल की बहन रमाबाई ने जावर में रमास्वामी नामक विष्णु मंदिर और एक कुण्ड का निर्माण करवाया।
  • रायमल की रानी श्रृंगार कंवर ने घोसुंडी (चित्तौड़) में एक बावड़ी का निर्माण करवाया।
    • यहाँ की प्रशस्ति में श्रृंगार कंवर के पति (रायमल) और पिता (जोधा) के वंशों का उल्लेख मिलता है।

घोसुंडी अभिलेख

  • यह दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का अभिलेख है।
  • यह राजस्थान का प्राचीनतम अभिलेख है, जो वैष्णव (भागवत) धर्म की जानकारी प्रदान करता है।
  • इस अभिलेख के अनुसार, गज वंश के राजा सर्वतात ने अश्वमेध यज्ञ करवाया था।

पृथ्वीराज (रायमल का बेटा)

  • पृथ्वीराज को उड़णा राजकुमार कहा जाता है।
  • पृथ्वीराज की रानी तारा के कारण अजमेर किले को तारागढ़ कहा गया।
  • पृथ्वीराज की छतरी कुंभलगढ़ किले में स्थित है, जिसे 12 खम्भों वाली छतरी कहा जाता है।

जयमल

  • जयमल रायमल का पुत्र था।
  • वह सोलंकियों के खिलाफ युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ।

महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) (1509 - 1528 ई.)

  • महाराणा सांगा रायमल के पुत्र थे।
  • अपने भाइयों के साथ विवाद होने के बाद सांगा ने श्रीनगर (अजमेर) में कर्मचंद पंवार के पास शरण ली।
  • रायमल की मृत्यु के बाद सांगा 5 मई 1509 को मेवाड़ के राजा बने।

राजनीतिक स्थिति:-

जब सांगा मेवाड़ के राजा बने:

  • दिल्ली में सिकंदर लोदी का शासन था।
  • गुजरात में महमूद शाह बेगड़ा का शासन था।
  • मालवा में नासिरशाह खिलजी राज्य करता था।

दिल्ली के सुल्तानों से संघर्ष

  1. खातोली (कोटा) का युद्ध – 1517 ई.
    • महाराणा सांगा ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराया।
  2. बाड़ी (धौलपुर) का युद्ध – 1518 ई.
    • सांगा ने इस युद्ध में भी विजय प्राप्त की।

मालवा के खिलाफ संघर्ष

संघर्ष के कारण

  • सांगा उत्तरी भारत में अपना प्रभाव स्थापित करना चाहते थे, जिसके लिए मालवा पर अधिकार आवश्यक था।
  • मालवा की आंतरिक स्थिति कमजोर थी, जो सांगा के लिए एक अनुकूल अवसर थी।
  • चंदेरी के राजा मेदिनीराय ने सांगा से महमूद खिलजी द्वितीय के खिलाफ सहायता मांगी।

महत्वपूर्ण युद्ध

  1. गागरोण (झालावाड़) का युद्ध – 1519 ई.
    • यह युद्ध सांगा और महमूद खिलजी द्वितीय के बीच हुआ।
    • गागरोण का किला उस समय चंदेरी (मालवा) के राजा मेदिनीराय के पास था।
    • इस युद्ध में सांगा ने विजय प्राप्त की।
    • महमूद खिलजी द्वितीय को हरिदास चारण ने गिरफ्तार किया।
    • सांगा ने हरिदास चारण को उनकी सेवा के बदले 12 गांव दान में दिए।
मुस्लिम लेखक ‘निजामुद्दीन' के अनुसार "लड़ाई में फतह पाने के बाद दुश्मन को गिरफ्तार करके पीछे उसको राज्य दे देना, यह काम आज तक मालूम नहीं की किसी दूसरे ने किया हो।”


गुजरात v/s सांगा 

संघर्ष के कारण:-

  •     सांगा की साम्राज्य विस्तार की नीति

    • महाराणा सांगा ने उत्तरी भारत में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए संघर्षों को प्राथमिकता दी।

  • .     कुम्भा के समय से संघर्ष की विरासत

    • मेवाड़ और गुजरात के बीच संघर्ष कुम्भा के शासनकाल से ही चला आ रहा था।

  •   गुजरात का मालवा के महमूद खिलजी द्वितीय को समर्थन

    • गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह द्वितीय ने सांगा के खिलाफ मालवा के शासक महमूद खिलजी द्वितीय को सहायता दी थी।

  • .     नागौर का मुद्दा

    • नागौर का मुस्लिम राज्य सांगा के अधीन करदाता (Tax-paying) राज्य था।
    • गुजरात का सुल्तान नागौर को स्वतंत्र करवाना चाहता था।

  •     ईडर का उत्तराधिकार संघर्ष (तत्कालीन कारण)

    • ईडर राज्य में उत्तराधिकार को लेकर भारमल और रायमल के बीच संघर्ष था।
    • गुजरात के मुजफ्फरशाह द्वितीय ने भारमल का समर्थन किया, जबकि सांगा ने रायमल का सहयोग किया।
    • सांगा ने इस संघर्ष में भारमल और मुजफ्फरशाह को पराजित कर ईडर पर विजय प्राप्त की।

बाबर v/s सांगा संघर्ष (1527 ई.)

बयाना (भरतपुर) का युद्ध – 16 फरवरी 1527 ई.

  • इस समय बयाना का किला बाबर के सेनापति मेहंदी ख्वाजा के अधीन था।
  • बाबर का सेनापति: सुल्तान मिर्जा।
इस युद्ध में महाराणा सांगा ने जीत प्राप्त की।

खानवा (भरतपुर) का युद्ध – 17 मार्च 1527 ई.

(वीर विनोद के अनुसार: 16 मार्च 1527 ई.)

  • बाबर ने इस युद्ध से पहले जिहाद की घोषणा की।
  • बाबर ने शराब न पीने की प्रतिज्ञा ली।
  • बाबर ने मुस्लिम व्यापारियों से लिया जाने वाला तमगा कर समाप्त कर दिया।
  • यह युद्ध बाबर और सांगा के बीच हुआ, जिसमें बाबर ने विजय प्राप्त की और उत्तरी भारत में मुगल साम्राज्य का आधार मजबूत किया।

महाराणा सांगा की सहायता के लिए राजाओं को पत्र

सांगा ने खानवा के युद्ध में सहायता के लिए राजस्थान और अन्य राज्यों के प्रमुख राजाओं को पत्र लिखकर सहयोग मांगा। इन राजाओं में शामिल थे:

  1. आमेर (जयपुर): पृथ्वीराज
  2. मारवाड़ (जोधपुर): मालदेव (राजा गांगा)
  3. बीकानेर: कल्याणमल्ल (राजा जैतसी)
  4. मेड़ता: वीरमदेव
  5. सिरोही: अखैराज देवड़ा
  6. चन्देरी (मध्यप्रदेश): मेदिनीराय
  7. ईडर: भारमल
  8. वागड़: उदयसिंह
  9. देवलिया (प्रतापगढ़): बाघसिंह
  10. सादड़ी (चित्तौड़): झाला अज्जा
  11. सलूम्बर: रतनसिंह चूंडावत
  12. मेवात (अलवर): हसन खाँ मेवाती
  13. महमूद लोदी: इब्राहिम लोदी का भाई


खानवा युद्ध (17 मार्च 1527 ई.)

परिणाम और घटनाएँ

  • महाराणा सांगा और बाबर के बीच हुए इस ऐतिहासिक युद्ध में राजपूतों और बाबर की सेना का टकराव हुआ।
  • सांगा के घायल होने के बाद: झाला अज्जा (सादड़ी) ने युद्ध का नेतृत्व किया।
  • बाबर ने विजय प्राप्त की और खुद को 'गाजी' की उपाधि दी।

सांगा की मृत्यु:-

  1. बसवा (दौसा):
    • घायल सांगा का इलाज बसवा में किया गया।
  2. ईरिच (उत्तर प्रदेश):
    • सांगा को उनके साथियों ने विष दे दिया।
  3. कालपी (उत्तर प्रदेश):
    • यहाँ सांगा की मृत्यु हो गई।
  4. माडलगढ़ (भीलवाड़ा):
    • यहाँ सांगा की स्मृति में छतरी बनाई गई।

खानवा युद्ध के कारण:-

1.     राजनीतिक महत्वाकांक्षा का टकराव:

    • सांगा और बाबर दोनों उत्तर भारत में प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे

2.     दिल्ली सल्तनत के क्षेत्रों पर सांगा का अधिकार:

    • सांगा ने दिल्ली सल्तनत के खंडार (सवाई माधोपुर) के 200 गाँवों पर अधिकार कर लिया था।

3.     राजपूत-अफगान गठबंधन:

    • राजपूतों और अफगानों के गठबंधन ने बाबर को चुनौती दी।

4.     बाबर का आरोप:

    • बाबर ने सांगा पर वचन भंग का आरोप लगाया।

5.     बयाना किले पर कब्जा:

    • सांगा ने बयाना किले पर अधिकार कर लिया था, जो बाबर की रणनीति को चुनौती दे रहा था।

सांगा की हार के कारण

  • सेना में एकता की कमी:

    • सांगा की सेना में विभिन्न सेनापतियों के नेतृत्व में लड़ाई हो रही थी, जिससे एकजुटता की कमी थी।

  • बाबर का तोपखाना:

    • बाबर के पास युद्ध में आधुनिक तोपखाने थे, जो राजपूतों के मुकाबले बहुत प्रभावी साबित हुए।

  • बाबर की युद्ध प्रणाली (तुलगुमा):

    • बाबर ने अपनी युद्ध प्रणाली के तहत तीन तरफ से आक्रमण किया, जो राजपूतों के लिए चुनौतीपूर्ण था।

  • युद्ध की तैयारी में समय:

    • बयाना युद्ध के बाद सांगा ने बाबर को युद्ध की तैयारी करने के लिए पर्याप्त समय दिया, जबकि बाबर ने युद्ध रणनीतियों को सुदृढ़ किया।

  • विश्वासघात:

    • युद्ध के दौरान सांगा के कई साथियों ने उसे छोड़ दिया और बाबर से मिल गए, जैसे रायसीन (मध्यप्रदेश) के सलहदी तंवर और नागौर के खानजादे मुस्लिम।
  • हथियारों का भेद:

राजपूत सेना ने हाथियों का उपयोग किया, जबकि मुगलों ने घोड़ों और हल्के हथियारों का इस्तेमाल किया, जो युद्ध में निर्णायक साबित हुआ।

खानवा युद्ध का महत्व

  • भारत में बाबर का राज स्थापित करना आसान हुआ:

    • अफगान और राजपूतों को हराने के बाद बाबर के लिए भारत में शासन करना सरल हो गया।

  • राजपूतों की एकता का अंत:

    • खानवा युद्ध राजपूतों के बीच एकता का आखिरी उदाहरण था। युद्ध के बाद राजपूतों में कोई बड़ा नेता नहीं बचा जो दिल्ली के खिलाफ संघर्ष कर सके।

  • राजपूतों की सामरिक कमजोरियाँ उजागर हुईं:

    • युद्ध ने राजपूतों की सामरिक कमजोरियों को उजागर किया, जिसके बाद मुगलों के लिए भारत में प्रभाव बढ़ाना आसान हो गया।

  • हिन्दू कला और संस्कृति को नुकसान:

    • सांगा के बाद राजपूतों का नेतृत्व कमजोर पड़ा, जिससे हिन्दू कला और संस्कृति को भी नुकसान हुआ।

  • मुगल नीति में परिवर्तन:

    • खानवा युद्ध के बाद, मुगलों की नीति राजपूतों के प्रति बदल गई। अकबर ने संघर्ष की बजाय मित्रता की नीति अपनाई, जिससे राजपूतों के साथ सहयोग बढ़ा।

सांगा की उपाधियाँ और परिवार

  • सांगा की उपाधियाँ:

    • सांगा को "हिन्दूपत" और "सैनिकों के भग्नावशेष" जैसे सम्मानित उपनामों से नवाजा गया था।

  • सांगा के दरबार में राजाओं की संख्या:

    • बाबरनामा के अनुसार, सांगा के दरबार में 7 राजा, 9 राव और 104 सेनापति/सरदार थे।

  • सांगा का परिवार:

    • सांगा का सबसे बड़ा बेटा भोजराज था।
    • भोजराज की शादी मीरा बाई से हुई थी।
    • रतनसिंह सांगा का दूसरा बेटा था, जो मेवाड़ का राजा बना और बूंदी के सूरजमल से लड़ते हुए मारा गया।

सांगा की मृत्यु और इसके बाद का प्रभाव

सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ में एक नेतृत्व शून्यता पैदा हो गई, जिससे राजपूतों को मुगलों के सामने संघर्ष में कठिनाइयाँ आईं। सांगा की वीरता और संघर्ष ने उसे भारतीय इतिहास में एक महान योद्धा के रूप में स्थापित किया, लेकिन युद्ध में उसकी हार ने राजपूतों के सामरिक पतन की नींव रखी।


महाराणा विक्रमादित्य (1531–1536 ई.)

  • परिचय:

    • पिता: राणा सांगा
    • माता: रानी कर्मावती (हाड़ी की रानी, बूंदी)
  • कर्मावती का संघर्ष:

    • 1533 ई. में गुजरात के बहादुरशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया।
    • रानी कर्मावती ने रणथम्भौर किला देकर संधि की थी।

  • पुनः आक्रमण:

    • 1534-35 ई. में बहादुरशाह ने मेवाड़ पर पुनः आक्रमण किया।
    • रानी कर्मावती ने मुग़ल सम्राट हूमायूं को राखी भेजकर मदद की गुहार लगाई।

  • चित्तौड़ का दूसरा साका (1535 ई.):

    • रानी कर्मावती ने जौहर किया।
    • देवलिया (प्रतापगढ़) के बाघ सिंह के नेतृत्व में केसरिया किया गया।
    • बाघ सिंह को "देवलिया दीवान" भी कहा जाता था।
    • बाघ सिंह की छतरी पाडुपोल (चित्तौड़गढ़) पर बनी है।
    • 1535 के पुर ताम्रपत्र से कर्मावती के जौहर की जानकारी मिलती है।
    • बाघ सिंह ने खानवा युद्ध में भी भाग लिया था।

  • बनवीर का राज:

    • रानी कर्मावती ने बनवीर को मेवाड़ का प्रशासक नियुक्त किया।
    • बनवीर उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज की दासी का बेटा था।
    • बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी थी (1536 ई.)।

  • उदयसिंह का बचाव:

    • बनवीर उदयसिंह को मारना चाहता था, लेकिन पन्नाधाय ने अपने बेटे चन्दन का बलिदान देकर उदयसिंह को बचा लिया।
    • कुम्भलगढ़ के आशा देवपुरा ने पन्नाधाय और उदयसिंह को शरण दी।


महाराणा उदयसिंह (1537–1572 ई.)

  • परिचय:

    • पिता: राणा सांगा
    • माता: रानी कर्मावती

  • मावली (उदयपुर) का युद्ध (1540 ई.):

    • इस युद्ध में उदयसिंह ने बनवीर को हराया।

  • शेरशाह सूरी से संधि (1544 ई.):
    • 1544 ई. में मारवाड़ से लौटते समय शेरशाह सूरी चित्तौड़ की ओर बढ़ा, परंतु उदयसिंह ने उससे संधि कर ली।

हरमाडा (अजमेर) का युद्ध - 1557 ई.

  • युद्ध के कारण:
    • यह युद्ध उदय सिंह और हाजी ख़ाँ पठान (अजमेर) के बीच हुआ।
    • जोधपुर के महाराज मालदेव ने हाजी ख़ाँ पठान का समर्थन किया, जिससे उदय सिंह की हार हुई।
  • विवाद:
    • मालदेव ने खैरवा (पाली) के जैतसिंह झाला की राजकुमारी से विवाह करने की इच्छा जताई, लेकिन जैतसिंह ने उसे उदय सिंह से विवाह करने की अनुमति दी, जिसके कारण मालदेव और उदय सिंह के बीच विवाद हुआ।
  • महल निर्माण:
    • उदय सिंह ने झाली रानी के लिए कुम्भलगढ़ में महल बनवाए, जिसे 'झाली रानी का मालिया' कहा जाता है।

उदयपुर की स्थापना और अन्य महत्वपूर्ण घटनाएँ:

  • उदयपुर की स्थापना (1559):
    • 1559 में उदय सिंह ने उदयपुर नगर की स्थापना की।
    • पहले उदय सिंह ने आहड में नया नगर बसाने की योजना बनाई थी, और वहाँ मोती महल का निर्माण किया था, लेकिन बाद में एक साधु के कहने पर उदयपुर को नया नगर बनाया गया।
  • उदयसागर झील:
    • उदय सिंह ने उदयसागर झील का निर्माण भी करवाया।

अकबर का चित्तौड़ पर आक्रमण (1567–68 ई.)

  • चित्तौड़ पर आक्रमण:
    • 1567-68 ई. में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया।
    • उदय सिंह गिर्वा की पहाड़ियों (उदयपुर) में भाग गए।
    • चित्तौड़ किले की रक्षा की जिम्मेदारी जयमल और पत्ता को दी गई।
    • अकबर की संग्राम नामक बन्दूक की गोली से जयमल घायल हो गए।
    • जयमल ने कल्ला राठौड़ के कंधों पर बैठकर युद्ध किया, जिसे "चार हाथों का देवता" कहा जाता है।
  • तीसरा साका (1568 ई.):
    • 1568 ई. में चित्तौड़ का तीसरा साका हुआ, जिसमें फूल कंवर के नेतृत्व में जौहर किया गया।
    • अकबर ने 25 फरवरी 1568 को चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया और वहाँ 30,000 लोगों का कत्लेआम किया।
  • अकबर की सराहना:
    • अकबर ने जयमल और पत्ता की वीरता से प्रभावित होकर उनकी मूर्तियाँ आगरा किले में स्थापित की।
फ्रांसिसी यात्री बर्नियर ने इन मूर्तियों का वर्णन किया है। पुस्तक— Travels in the Mughal Empire

• बीकानेर के जूनागढ़ किले में भी जयमल तथा पत्ता की मूर्तियाँ है ।

जयमल:-

  •  मेड़ता के राजा थे।
  • 1562 ईस्वी में अकबर ने मेड़ता पर अधिकार कर लिया।

पत्ता चूडावत

  • यह आमेट (राजसमंद) का सामंत था।
  • आमेट मेवाड़ का प्रथम श्रेणी ठिकाना था।

फूलकंवर

  • जयमल की बहन तथा पत्ता की रानी ।
  • जयमल और कल्ला राठौड़ की छतरियाँ चित्तौड़गढ़ में हनुमान पोल और भैरव पोल के बीच स्थित हैं, जबकि पत्ता की छतरी चित्तौड़गढ़ के 'रामपोल' पर स्थित है।

  • 28 फरवरी 1572 ईस्वी को होली के दिन गोगुन्दा (उदयपुर) में उदयसिंह का निधन हुआ। उनकी स्मृति में गोगुन्दा में उनकी छतरी बनाई गई। उदयसिंह ने अपने बड़े बेटे महाराणा प्रताप को राजा नहीं बनाया, बल्कि अपने छोटे बेटे जगमाल को राजा घोषित किया।

महाराणा प्रताप (1572–1597 ई.)

  • पिता: महाराणा उदयसिंह
  • माता: जयवन्ता बाई सोनगरा (पाली के अखैराज सोनगरा की पुत्री)
  • जन्म: 9 मई 1540 ई. (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया, विक्रमी संवत 1597)
  • जन्म स्थान: कुम्भलगढ़
  • बचपन का नाम: कीका
Maharana Pratap
Maharana Pratap

विवाह और राजतिलक

  • रानी: अजब दे पंवार
  • पहला राजतिलक: गोगुन्दा में हुआ, जिसे सलूम्बर के सामंत कृष्णदास चूण्डावत ने संपन्न किया।
  • विधिवत राजतिलक: कुम्भलगढ़ में हुआ, जिसमें मारवाड़ के चंद्रसेन भी उपस्थित थे।

अकबर के दूत

प्रताप को अकबर की अधीनता स्वीकार कराने के लिए चार दूत भेजे गए:

  1. जलाल खाँ कोरची: सितंबर 1572 ई.
  2. मानसिंह: जून 1573 ई.
  3. भगवंतदास: सितंबर 1573 ई.
  4. टोडरमल: दिसंबर 1573 ई.

ल्दीघाटी का युद्ध (18 जून 1576 ई.)

·        स्थान: हल्दीघाटी, राजसमंद

·        प्रताप की सेना:

    • कृष्णदास चूण्डावत (सलूम्बर)
    • रामशाह तोमर (ग्वालियर)
    • हाकिम खाँ सूर (अफगान सरदार)
    • पूंजा भील (भीलों का सरदार)

·        मुगल सेना:

    • सेनापति: मानसिंह (प्रथम बार स्वतंत्र सेनापति)
    • आसफ खाँ

युद्ध से जुड़ी विशेष घटनाएँ:

  1. युद्ध से पहले मुगल सेना मोलेला गांव में और मेवाड़ की सेना लोसिंग गांव में रुकी थी।
  2. चेतक के घायल होने के कारण महाराणा प्रताप युद्धभूमि से बाहर चले गए।
  3. झाला मान (बीदा): युद्ध का नेतृत्व किया और वीरगति को प्राप्त हुए।
  4. मिहत्तर खाँ’: अकबर के आने की झूठी सूचना दी थी।
  5. मानसिंह प्रताप को अकबर की अधीनता स्वीकार कराने में विफल रहा।
  6. अकबर ने मानसिंह और आसफ खाँ का दरबार में आना बंद करवा दिया।

चेतक की स्मृति:-

  • चेतक की छतरी बलीचा (राजसमंद) में स्थित है।

युद्ध में हाथियों की भूमिका

  • महाराणा प्रताप की सेना:
    • लूणा और रामप्रसाद नामक हाथियों ने भाग लिया।
    • मुगल सेना ने रामप्रसाद को पकड़ लिया, और अकबर ने इसका नाम बदलकर पीरप्रसाद कर दिया।
  • मुगल सेना:
    • मरदाना और गजमुक्ता नामक हाथी युद्ध में शामिल थे।

हल्दीघाटी युद्ध के अन्य नाम

इतिहासकार                     हल्दीघाटी युद्ध के नाम
• अबुल फजल      ----       खमनौर का युद्ध
• बदायूंनी          ----        गोगुन्दा का युद्ध
• जेम्स टॉड        ----        मेवाड़ की थर्मोपोली
• आदर्शी लाल श्रीवास्तव -- बादशाह बाग का युद्ध
     
बदायूंनी (पुस्तक: मुन्तखब-उत-तवारीख)
    • बदायूंनी ने स्वयं इस युद्ध में भाग लिया था।
    • उन्होंने लिखा कि मुगलों में महाराणा प्रताप का पीछा करने का न तो साहस था और न ही शक्ति।
    • मुगल सेना को आशंका थी कि प्रताप की सेना पहाड़ों में घात लगाकर हमला कर सकती है।
    • भीलों ने मुगल सेना को परेशान किया और उनकी रसद सामग्री लूट ली।
  हल्दीघाटी युद्ध का महत्व
  1. प्रादेशिक स्वतंत्रता का संघर्ष:
    • यह साम्राज्यवादी शक्तियों के खिलाफ एक स्वतंत्रता संग्राम था।
  2. आशा और नैतिकता का संचार:
    • महाराणा प्रताप ने सीमित संसाधनों के बावजूद अकबर से संघर्ष किया, जिससे मेवाड़ की जनता में नैतिकता और आशा जागृत हुई।
  3. राष्ट्रवादी भावना का प्रसार:
    • इस युद्ध ने मेवाड़ की सामान्य जनता और जनजातियों में राष्ट्रवादी भावनाओं का संचार किया।
  4. प्रेरणा का स्रोत:
  • यह युद्ध आज भी राष्ट्रवादियों के लिए प्रेरणा का कार्य करता है।               

हल्दीघाटी युद्ध का निष्कर्ष

  • बदायूंनी ने लिखा कि मुगलों के मन में प्रताप की सेना का भय था।
  • मानसिंह को अकबर ने दरबार में उपस्थित होने से रोक दिया।
  • स्वयं अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण करने का निर्णय लिया।
  • हल्दीघाटी के युद्ध में प्रताप ने मुगलों के अजेय होने के भ्रम को तोड़ दिया और यह साबित किया कि साहस और संघर्ष से कुछ भी संभव है।
  • 1576 ई. में अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण किया और उदयपुर का नाम बदलकर मुहम्मदाबाद कर दिया।

कुम्भलगढ़ का युद्ध

  • मुगल सेनापति शाहबाज खान ने कुम्भलगढ़ पर तीन बार आक्रमण किए:
    1. 1577 ई.
    2. 1578 ई.
    3. 1579 ई.

शेरपुर (उदयपुर) घटना - 1580 ई.

  • घटना का विवरण:
  • अमरसिंह ने अब्दुल रहीम (मुगल सेनापति) की बेगमों को गिरफ्तार कर लिया था।
  • प्रताप ने अमरसिंह द्वारा गिरफ्तार की गई बेगमों को ससम्मान वापस भेज दिया।

दिवेर (राजसमंद) का युद्ध - 1582 ई.

  • युद्ध का विवरण:

    • मुगल सेना ने चार स्थानों पर अपने थाने स्थापित किए थे:
      1. दिवेर
      2. देवल
      3. देबारी
      4. देसूरी
    • प्रताप ने मुगल सेना को दिवेर में हराया।
    • अमरसिंह ने मुगल सेनापति सुल्तान खान को मार डाला।
    • जेम्स टॉड ने इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा था।

प्रतापगढ़, बाँसवाड़ा, और ईडर रियासतों ने प्रताप का साथ दिया।

जगन्नाथ कछवाहा का आक्रमण - 1585 ई.

    • जगन्नाथ कछवाहा ने मेवाड़ पर आक्रमण किया।
    • यह अकबर की तरफ से मेवाड़ पर अंतिम आक्रमण था।

प्रताप का मालपुरा (टोंक) पर आक्रमण

  • मालपुरा पर अधिकार:
    • प्रताप ने आमेर रियासत का मालपुरा (टोंक) छीन लिया था।
    • प्रताप ने झालरा तालाब और नीलकण्ठ महादेव मंदिर का निर्माण करवाया।

चावण्ड (उदयपुर) को राजधानी बनाना

  • राजधानी का परिवर्तन:
    • प्रताप ने चावण्ड (उदयपुर) को अपनी राजधानी बनाया।
    • चावण्ड 28 वर्षों तक मेवाड़ की राजधानी रहा।
    • प्रताप ने चावण्ड में चामुंडा माता का मंदिर और महलों का निर्माण कराया।
चावण्ड से मेवाड़ की स्वतंत्र चित्रकला का विकास हुआ, और प्रमुख चित्रकार नासिरूद्दीन रहे।

प्रताप की मृत्यु - 19 जनवरी 1597 ई.

  • मृत्यु:
    • 19 जनवरी 1597 ई. को चावण्ड में प्रताप की मृत्यु हुई।
    • चित्तौड़गढ़ और माण्डलगढ़ को छोड़कर प्रताप ने सम्पूर्ण मेवाड़ पर पुनः अधिकार कर लिया।
  • प्रताप की छतरी:
    • प्रताप की छतरी बांडोली (उदयपुर) में स्थित है, जिसमें 8 खंभे हैं।

प्रताप के दरबारी विद्वान और सहयोगी

  • चक्रपाणि मिश्र (दरबारी विद्वान):
    • पुस्तकों के लेखक:
      1. राज्याभिषेक (राजतिलक की शास्त्रीय पद्धति)
      2. मुहुर्तमाला (ज्योतिष शास्त्र)
      3. विश्व वल्लभ (उद्यान विज्ञान की जानकारी)
  • हेमरत्न सूरि:
    • गौरा बादल री चौपाई के लेखक।
  • सादुलनाथ त्रिवेदी:
    • प्रताप ने इन्हें मंडेर नामक जागीर दी थी।
    • यह जानकारी 1588 ई. के उदयपुर अभिलेख से मिलती है।
  • भामाशाह:
    • भामाशाह ने प्रताप से चूलिया नामक गाँव में मुलाकात की और उन्हें 25 लाख रूपये नकद और 20 हजार स्वर्ण अशर्फियाँ भेंट की।
    • इस सहायता से प्रताप अपनी 25 हजार की सेना को 12 साल तक बनाए रख सकते थे।
    • प्रताप ने भामाशाह को प्रधानमंत्री बनाया।
    • भामाशाह को मेवाड़ का उद्धारक कहा जाता है।
  • माला सांदू
  • रामा सांदू

  • जीवधर की रचना 'अमरसार' के अनुसार, प्रताप ने सृदृढ़ शासन स्थापित किया था, जिससे महिलाएँ और बच्चे भी भयमुक्त थे।
  • उनके शासन में आन्तरिक सुरक्षा इतनी मजबूत थी कि बिना अपराध के किसी को कोई दण्ड नहीं दिया जाता था।
  • प्रताप ने शिक्षा प्रसार के लिए भी प्रयास किए थे, जिससे उनके शासन में शिक्षा का स्तर बेहतर हुआ।
  • कर्नल टॉड की टिप्पणी:

    • कर्नल टॉड ने प्रताप के संबंध में लिखा कि अरावली पर्वत की कोई भी घाटी ऐसी नहीं है, जो प्रताप के किसी न किसी वीर कार्य, उज्ज्वल विजय, या इससे भी महत्वपूर्ण कीर्तियुक्त पराजय से पवित्र न हुई हो।
    • हल्दीघाटी को मेवाड़ की थर्मोपल्ली और दिवेर को मेवाड़ का 'मेराथन' कहा जाता है, जो प्रताप की वीरता और संघर्ष का प्रतीक हैं।

अमरसिंह प्रथम (1597 - 1620 ई.) और मुग़ल-मेवाड़ संधि:

  • मुगल-मेवाड़ संधि (5 फरवरी 1615 ई.):

  • यह संधि मुगल सम्राट जहाँगीर और मेवाड़ के शासक अमरसिंह प्रथम के बीच हुई थी।
  • संधि के लिए मेवाड़ की ओर से हरिदास और शुभकरण ने प्रस्ताव भेजा था, जबकि मुगल पक्ष से खुर्रम (शाहजहाँ) ने संधि की थी

  • संधि की शर्तें:

  • मेवाड़ का राणा मुग़ल दरबार में नहीं जाएगा।
  • मेवाड़ का युवराज मुग़ल दरबार में जाएगा।
  • मेवाड़ मुग़ल सेना को 1000 घुड़सवार सैनिकों की सहायता देगा।
  • चित्तौड़ का किला मेवाड़ को वापस किया जाएगा, लेकिन मेवाड़ इसका पुनर्निर्माण नहीं कर सकेगा।
  • वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं किए जाएंगे।

संधि का महत्व:

  • सांगा और प्रताप के समय की स्वतंत्रता की भावना का पतन हुआ, और युद्धों का अंत होने से मेवाड़ में शांति आई।
  • शांति व्यवस्था स्थापित होने के कारण कलात्मक गतिविधियों को बढ़ावा मिला।
  • युवराज कर्णसिंह को जहाँगीर ने 5000 का मनसबदार बनाया।
  • जहाँगीर ने कर्णसिंह और अमरसिंह की मूर्तियाँ आगरा के किले में लगवाई थी।
  • अंग्रेजी राजदूत सर टॉमस रो ने लिखा कि जहाँगीर ने मेवाड़ के राणा को बख्शिशों द्वारा अधीन किया, न कि बल से।
  • इस संधि से जहाँगीर की आय में कोई वृद्धि नहीं हुई, बल्कि उसे मेवाड़ को बहुत कुछ देना पड़ा
  • अमरसिंह की निराशा:

  • अमरसिंह इस संधि से निराश था और राजसमंद (नौ चौकी) चला गया, जहाँ उसने राजसमंद झील का निर्माण करवाया था।

  • ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह:

  • 1637 में, शाहजहाँनी मस्जिद का अभिलेख जो ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में था, यह बताता है कि शहजादा खुर्रम ने मेवाड़ के साथ संधि के बाद यह मस्जिद बनवाई थी।
  • अमरसिंह की छतरी:

  • आहड (उदयपुर) में अमरसिंह की छतरी बनी हुई है, और इसके बाद से मेवाड़ के सभी महाराणाओं की छतरियाँ आहड में स्थित हैं, जिसे महासतियाँ कहा जाता है।